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[[Category:सेदोका]]
<poem>
कौतुकमयी
प्रकृति सहचरी
गोते लगा, फिर
भर ला गगरी।
दूब–बिछौने
धूप का तकिया ले
जा चुका था सूरज
आँख ही तब खुली !
शोख़ अदा से
मचलती शाम ने
दोनों होश खोकर
आके झाँका प्रभात।
मेघ न आए
आषाढ़ बीत गयाय
यक्ष किसे सुनाए
कैसे भेजे सन्देसा?
विरही यक्ष
बैठा विरहाकुल
मेघदूत आ जाए
तो सन्देस पठाए !
श्यामपट्ट पे
खडि़या से निकाले
माँ की गोद जा सोया
अंक दमक रहे।
बड़े उन्मन
सदाबहार वन
वसन्त की दस्तक
रोमांच भरे कौन ?
बड़े सवेरे
कोकिल कूक उठा
सावन की पुफहार
भिगो, चलती बनी !
मेघों ने मारी
हँस के पिचकारी
खेतों में उग आई
वर्षा की किलकारी।
मेघों से घिरी
सूरज की बिन्दिया
जेठ की प्रचण्डता
धूलि में लोट रही !
वर्षा की साँझ
जुगनू टिमकते
तिमिर–भरा मन
आलोकित करते।
साँझ फूलती :
लाल–नारंगी मेघों