1,501 bytes added,
16:50, 2 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कहकशाँ है मेरी सुंदन, शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन
नूर का तड़का मेरी चिलमन, तोड़ चुका हूँ सारे बंधन
पूरब पच्छम उत्तर दक्खन, बोल इकतारे झन झन झन झन
मेरे तन में गुलशन सबके, मेरे मन में जोबन सबके
मेरे घट में साजन सबके, मेरी सूरत दर्शन सबके
सबकी सूरत मेरा दर्शन, बोल इकतारे झन झन झन झन
सब की झोली मेरी झोली, सब की टोली मेरी टोली
सब की होली मेरी होली, सब की बोली मेरी बोली
सब का जीवन मेरा जीवन, बोल इकतारे झन झन झन झन
सब के काजल मेरे पारे, सब की आँखें मेरे तारे
सब की साँसें मेरे धारे, सारे इन्सां मेरे प्यारे
सारी धरती मेरा आँगन, बोल इकतारे झन झन झन झन
</poem>