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डर लगता है / शकुन्त माथुर

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मेरे छोटे जीवन-भर का
दूजे बर्तन में उँड़ेलते
एक बूंद बून्द भी छिटक न जाए
कहीं बीच में टूट न जाए
छूने भर से जी कँपता है।
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