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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
गुलों से महकता चमन चाहिए
मुकम्मल निज़ामे वतन चाहिए

हरे पेड़पौधों से शोभित धरा
सितारों भरा इक गगन चाहिए

परस्पर रहें सब यहाँ प्यार से
ज़़माने में मुझ को अमन चाहिए

सफलता की खातिर यकीनन हमें
जतन‚ हौसला और लगन चाहिए

मसर्रत इसी में है मिलती मुझे
ख़ुदा मुझ को फिक्रेसुखन चाहिए

जहाँ गूंजतीं हों रुबाई‚ ग़ज़ल
‘अजय' को वही अंजुमन चाहिए
</poem>
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