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04:36, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
एक दिन ख़्वाब ये साकार भी हो सकता है
वो मेरे इश्क़ का बीमार भी हो सकता है
तुम हिक़ारत से जिसे देख रहे हो यारो
वो मुहब्बत का परस्तार भी हो सकता है
आज जिस पर नहीं दिखती है कोई पत्ती भी
कल वही पेड़ समरदार भी हो सकता है
अजनबी शख़्स पे यूँ ही न भरोसा करना
शख़्स वो कोई गुनहगार भी हो सकता है
देखने भर का ही तो काम नहीं आँखों का
इनसे जज़्बात का इज़हार भी हो सकता है
</poem>