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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
सदमात हिज्रे यार के जब-जब मचल गए
आँखों से अपने आप ही आँसू निकल गए

मुम्किन नहीं था वक़्त की जुल्फ़ें ़ संवारना
तक़दीर की बिसात के पासे बदल गए

क्या ख़ैर ख़्वाह आप से बेहतर भी है कोई
सब हादसात आप की ठोकर से टल गए

चूमा जो हाथ आप ने शफ़क़त से एक दिन
हम भी किसी फ़क़ीर की सूरत बहल गए

पहुँचे नहीं क़दम कभी अपने मक़ाम पर
मंज़िल बदल गयी कभी रस्ते बदल गए
</poem>
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