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|संग्रह=ज़ियारत / अनु जसरोटिया
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<poem>
तेरे होंटों का गीत बन जाऊँ
गीत बन कर फ़ज़ा में लहराऊँ

आप ख़ुश रंग फूल बन जायें
उस में ख़ुशबू सी मैं समा जाऊँ

जी में आता है बिन मिले तुझ से
मैं तिरे शहर से गुज़र जाऊँ

तू मिरी रूह में समा जाये
मैं तिरी रूह में उतर जाऊँ

तू मिरा कृष्ण है, कन्हैया है
क्यों न मीरा के मैं भजन गाऊँ

बाँसुरी बज रही हो गोकुल में
और मैं उस की धुन पे लहराऊँ

सोचती हूँ कि कृष्ण मन्दिर में
जोगिनों के लिबास में जाऊँ

पा के तुझ से मैं रौशनी की किरण
अपने दिल का दिया जला पाऊँ

कृष्ण मँदिर में मूर्ति को 'अनु'
आज सोने का ताज पहनाऊँ
</poem>
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