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07:20, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
}}
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<poem>
गुज़र गया है ज़माना बुरा भला कहते
ये आरज़्ाू थी कोई लफ़्ज़ प्यार का कहते
सह्र हुई तो वो डूबी हुई थी अश्कों में
तमाम रात गुज़ारी ख़ुदा ख़ुदा कहते
तुम्हारे कारे-नुमायां भी सब के जैसे थे
तो कैसे औरों से फिर तुम को हम जुदा कहते
हुजूमे ग़म में जो तुम हम को आासरा देते
तो अपनी ज़ीस्त का हम तुम को आसरा कहते
ये एक सच है हमारी ज़ुबा नहीं थकती
तुम्हारा ही नाम लेते तुम्हें ख़ुदा कहते
</poem>