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04:21, 4 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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<poem>
ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है
उम्र भी उम्र भर में गुज़री है
ग़मज़दा तारों का हिज़ाब ओढ़े
एक शब रात भर में गुज़र है
इक कसीदा ग़ज़ल प रुख करूं तो
हर ख़ुशी चश्म-ए-तर में गुज़री है
चाँद की बेवफ़ाई के सदके
चाँदनी दोपहर में गुज़री है
एक जुगनू सहर दिखाएगा
शब इसी मोतबर में गुज़री है
</poem>