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वक़्त के साँचें में ढलना है तुझे / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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05:06, 4 अक्टूबर 2018
आब<ref>पानी</ref> की शय में बदलना है तुझे
इज़्तिराब-ए-ग़म<ref>ग़म की चिंंता<
ref
/
ref
> नहीं करना है अब
जीना है ख़ुद के लिए जीना है अब
दास्तान-ए-दिल सुनाए भी तो क्या?
Jangveer Singh
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