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अरे चितेरे! किस भविष्य का तूने चित्र बनाया?
बता, बता, किसके मानस का है यह भाव चुराया?

शैशव के भोलेपन-सी, नवयौवन की आँधी सी-
अरे बता, किसके अदृष्ट की यह अजान प्रतिछाया?

क्या भविष्य इतना उज्ज्वल है, बोल अरे मतवाले!
क्या न इसे भी ढक सकते हैं बादल काले-काले?
अभी बिहँसती है प्राची में जो यह स्वर्णिण रेखा॥
आती होगी निशा-तिमिर के भीषण तीर सँभाले॥

अरे प्रवंचक! अब न पिला इस मादकता की हाला॥
अरे देखने दे भविष्य का केवल अमिट उजाला।
हाय, तनिक तो सोच कि जग का नित्य नियम है कैसा!
सुख की गोदी में ही तो पलती जीवन की ज्वाला॥

संसृति के झूठे सपनों में मन की ममता भूली-
अरे चितेरे! अब न फेर इस पट पर अपनी तूली!

</poem>
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