भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
क्या से क्या हो गई तू
ख़बर बेख़बर
साँस घुटती रही
लाज लुटती रही
तू सिनेमा सितारों में उलझी रही
गर्म पूँजी का बिस्तर ही करती रही
 
क्या कहूँ गिर गई आजकल किस क़दर
 
सच को समझा नहीं
सच को जाना नहीं
झूठ को झूठ तो तूने माना नहीं
जो बिकेगा नहीं वो ख़बर भी नहीं
 
जा टँगा सत्य झूठों की दीवार पर
 
भूत का डर दिखा
फिर भविष्यत बता
ज़ुल्म क्या क्या हुआ सब गई तू छुपा
उठ गया तुझसे अब तो यक़ीं देश का
 
ख़त्म होने से पहले बदल दे डगर
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits