भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
बूँद-बूँद बरसो
मत धार-धार बरसो
करते हो
यूँ तो तुम
बारिश कितनी सारी
सागर से
मिल जुलकर
हो जाती सब खारी
 
जितना सोखे धरती
उतना ही बरसो
पर
कभी-कभी मत बरसो
बार-बार बरसो
 
गागर है
जीवन की
बूँद-बूँद से भरती
बरसें गर धाराएँ
टूट-फूट कर बहती
 
जब तक मन करता हो
तब तक बरसो लेकिन
ढेर-ढेर मत बरसो
सार-सार बरसो
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits