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|रचनाकार=मधु शर्मा
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}}
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<poem>
परदों के पीछे
एक क्रास है
एक घन को काटता
और एक औरत
खिड़की के जाल में कै़द
आइना लिए
जिसमें उसकी सूरत
कहीं नहीं,
सिर्फ़ सीढ़ियाँ हैं
और एक व्यर्थ-सी
उतार-चढ़ाव की थकन
ज़िंदगी
बस्स्-
यूँ ही-सी...
</poem>
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परदों के पीछे
एक क्रास है
एक घन को काटता
और एक औरत
खिड़की के जाल में कै़द
आइना लिए
जिसमें उसकी सूरत
कहीं नहीं,
सिर्फ़ सीढ़ियाँ हैं
और एक व्यर्थ-सी
उतार-चढ़ाव की थकन
ज़िंदगी
बस्स्-
यूँ ही-सी...
</poem>