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'''नाम:-''' सन्दीप कौशिक
'''पिता:-''' श्री रामबिलास शर्मा (कृषक)सुपुत्र श्री कुंदनलाल
'''माता:-''' श्रीमती अत्री देवी (गृहणी)
'''जन्मदिन:-''' 8 नवम्बर, 1986
'''स्थायी पता:-'''
'''पारिवारिक परिचय:-'''
तीन चाचा- रामेहर, कृष्ण, बसंतलालदो भाई- ब्रह्मनाथ (बजरंग) व सुंदर लाल,दो बहन- राजबाला (राजल) व शीला देवी, धर्मपत्नी श्रीमती कविता देवी व संतान रूप में दो पुत्री - ध्वनी शर्मा एवं मन्नत कौशिक
'''ससुराल:-''' गाँव पात्थरआळी, भिवानी, हरियाणा
'''शिक्षा-दिक्षा:-''' बी.ऐ. (कला स्नातक, एम.बी.यू.-हिमाचल)
'''लेखन भाषा''':हिंदी, हरियाणवी, अंग्रेज़ी,
'''साहित्यिक परामर्श:-'''
डॉ शिवचरण शर्मा- प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय-सिरसा (आईएस आईऐएस ऑफिसर श्री के.सी. शर्मा अनुज)।
'''सम्प्रति/व्यवसाय:-'''
निजी कंपनी मे शाखा प्रबंधक (ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर)- गांधीधाम (गुजरात)
'''उपलब्धियां:-'''
1. बारहवी कक्षा के अंतर्गत NSS कैंप द्वारा प्रथम पुरस्कार - राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, गाँव सुई, भिवानी (हरियाणा)
1. साहित्यिक संग्रह के माध्यम से लोककवियो के दबे हुए साहित्य को उजागर करना।
2. पर्यावरण संरक्षण हेतु समय समय पर पौधारोपण करना।
6. सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं मे गुप्तरूप से आर्थिक सहयोग करना।
7. अवसर रूप मे जरुरतमंद पीडितो के लिए रक्तदान हेतु सहयोग करना।
'''सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव :-'''
>मीडिया प्रभारी- म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान
'''सम्मान/पुरस्कार:-'''
>पंजीकृत संस्था 'म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान' द्वारा अतिथि सम्मान व संस्कृति प्रेम सम्मान से पुरस्कृत
'''सदस्य:-''' कविता कोश टीम
'''प्रभाव ग्रहण:-'''
आई.ऐ.एस. ऑफिसर व कलापरिषद अध्यक्ष स्व. श्री के.सी. शर्मा, लोककवि प. राजेराम संगीताचार्य, गंधर्व कवि प. नन्दलाल, प्रसिद्द सांगी खीमा स्यामी, सुप्रसिद्ध लोकगायक- मास्टर सतबीर सिंह, हिन्द केसरी बाली शर्मा व श्री राजेन्द्र सिंह खरकिया
'''रूचि-अभिरुचि:-'''
पठन और इसके साथ-साथ साहित्य संग्रह के रूप मे हरियाणवी लोककवियो के साहित्य को किसी भी माध्यम से उजागर करना और प्राचीनतम हरियाणवी संस्कृति से सम्बंधित विषयों पर नयी पीढ़ी मे जागरूकता पैदा करना तथा अन्य माध्यमों जैसे- सोशल नेटवर्किंग द्वारा किसी सांस्कृतिक व साहित्यिक फेसबुक/व्हाट्सअप ग्रुप और विकिपीडिया, साहित्यपीडिया, कविता कोष सोशल वेब-पेज व साइट्स पर भी गहन रूप मे रुचिकर होकर, इस अत्याधुनिक दौर मे भी हरियाणवी संस्कृति की छंटा बिखेरना।
'''विषय-विशेष:-'''
>राष्ट्रीय साहित्यिक मंच 'कविता कोश' मे स्वयंसेवक के तौर पर अधिकृत सदस्य नियुक्त।
>उतरप्रदेश के टन-बी-टन उपाधि से अलंकृत लोककवि प. रघुनाथ के परिवार द्वारा विश्वसनीय व सामर्थ्य तौर 'प. रघुनाथ ग्रंथावली' का कार्यभार सौंपना।
'''साहित्यिक अमरत्व व उपादेयता :-'''
1. लोककवि पंडित राजेराम संगीताचार्य 'साहित्य संकलित' (कवि मुखारविंद से हस्तलिखित एवं कंप्यूटरकृत)।
2. होनहार कवि ललित कुमार 'साहित्य संकलित' (कवि मुखारविंद से हस्तलिखित एवं कंप्यूटरकृत)।
3. लोककवि प. रघुनाथ ग्रंथावली 'कंप्यूटरकृत साहित्य लेखन' और प्रकाशक के रूप मे प्रकाशाधीन।
'''संभावित प्रतिक्रिया:-'''
मैं ये चाहूंगा, कि जो भी साहित्य और संस्कृति से जुड़कर अपनी सभ्य्ता को बचाने का प्रयास करेगा तो उसके लिए लोकसाहित्य में और लोक संस्कृति में अनेक संभावनाएं विद्यमान हैं। इसीलिए मेरी यही कामना हैं कि जो संभावित योगदान है, उसे युवावर्ग देने में न हिचकिचाए।
'''सन्देश/आग्रह:-'''
आज काल के गर्त मे तीव्र रूप से समा रही हरियाणवी संस्कृति व साहित्य के संरक्षण हेतु इस युवा पीढ़ी को चेतनाम्रत पान करना जरुरी है क्यूंकि मनुष्य की अमूल्य निधि उसकी संस्कृति है और संस्कृति के संरक्षण में लोकसाहित्य अत्यंत सहायक हैं। संस्कृति और साहित्य एक ऐसा पर्यावरण है, जिसमें रहकर व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी बनता है, और प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता अर्जित करता है।
संस्कृति का सामान्य अर्थ, संस्कृति सीखे हुए व्यवहारों की सम्पूर्णता है, लेकिन संस्कृति की अवधारणा इतनी विस्तृत है कि उसे एक वाक्य में परिभाषित करना सम्भव नहीं है। वास्तव में मानव द्वारा अप्रभावित प्राकृतिक शक्तियों को छोड़कर जितनी भी मानवीय परिस्थितियाँ हमें चारों ओर से प्रभावित करती हैं, उन सभी की सम्पूर्णता को हम संस्कृति कहते हैं, और इस प्रकार संस्कृति के इस घेरे का नाम ही ‘सांस्कृतिक पर्यावरण’ है। दूसरे शब्दों में, ‘संस्कृति एक व्यवस्था है, जिसमें हम जीवन के प्रतिमानों, व्यवहार के तरीकों, अनेकानेक भौतिक एवं अभौतिक प्रतीकों, परम्पराओं, विचारों, सामाजिक मूल्यों, मानवीय क्रियाओं और आविष्कारों को शामिल करते हैं।’ सर्वप्रथम वायु पुराण में ‘धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’, तथा ‘मोक्ष’ विषयक मानवीय घटनाओं को ‘संस्कृति’ के अन्तर्गत समाहित किया गया। इसका तात्पर्य यह हुआ कि मानव जीवन के दिन-प्रतिदिन के आचार-विचार, जीवन शैली तथा कार्य-व्यवहार ही संस्कृति कहलाती है। मानव समाज के धार्मिक, दार्शनिक, कलात्मक, नीतिगत विषयक कार्य-कलापों, परम्परागत प्रथाओं, खान-पान, संस्कार इत्यादि के समन्वय को संस्कृति कहा जाता है। अनेक विद्वानों ने संस्कार के परिवर्तित रूप को ही संस्कृति स्वीकार किया है, अतः मेरा मानना है कि संस्कृति का एक मुख्य रूप लोकसाहित्य भी है।
'''व्यवसायिक पता:-'''
संदीप कौशिक सुपुत्र श्री रामबिलास शर्मा
'''सम्पर्क सूत्र:-''' +91-8818000892, 7096100892.
'''ईमेल एड्रेस:-''' sandeepsharmaharyana@gmail.com
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