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Kavita Kosh से
|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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गद्य पद्य न´् नञ् छंद के जानूँ न´् नञ् भाषा के ग्यान।ग्यानदिला सकऽ हऽ तूँही तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान।।पहचान संसकिरित अंगरेजी हिंदी हे ग्यानी के खातिर।खातिरअग्यानी मगही ही हम ओकरो में न´् शातिर।नञ् शातिरविनती कर रहलुँ तोहरा से हम बालक नादान।। नादान दिला...सकऽ हऽ तूँ ही मइया जग में हमरा पहचान
हम्मर बाजी तोर हाँथ में रखिहा मइया लाज।
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