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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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की बतइयो भइया ई कइसन हो दुनियाँ?
आव रे मुनियाँ बजाव हरमुनियाँ।।हरमुनियाँअप्पन मेहरारू के संदूक में रक्खे।रक्खेनउका भेराइटी के रोजे ऊचक्से।ऊचक्सेरोजे हिलाबऽ हे ओक्कर नथुनियाँ।। नथुनियाँआव रे ....जुअनका के साथ में बुढ़वो हे मातल।मातलपीके ठरां हो गेल तूँ बाकल।बाकलबेटी जइसन के ठेकाबे केहुनियाँ।। केहुनियाँआव रे ....जने देखऽ ओन्ने खुल गेल हें कलाली।कलालीबापे करऽ हे अब बेटी के दलाली।दलालीअभिओं तूँ चेत जइहें गे बहिनियाँ।। बहिनियाँआव रे ...केकरा कहिअइ हम अप्पन हो बउआ।बउआसिधका के समझ ई सब कोय कउआ।कउआनिकल जाहे काम त हो जाहे निगुनियाँ।। निगुनियाँआव रे ....जे लेतो रुपइया फेर घूर के न अइते।अइतेमाँगला पर लाल पियर अँखिया देखइतो।देखइतोखोजबा त बन जइतो मास के पुनियाँ।। पुनियाँआव रे ....साली आउ सरहज हो गेल अगुआनी।अगुआनीराम-किशन के फेंक देलक पछुआनी।पछुआनीहे बँधल काम धेनु सबके बथनियाँ।। बथनियाँआव रे ....सुबह-शाह उठे जे जाहे शिवाला।शिवालादिन में फेरे माला करे रात में घोटाला।घोटालाचाटऽ हे माया-बजार के चटनियाँ।। चटनियाँआव रे ....जेकरा पर देश करे उहे काम गंदा।गंदागीता-रामायण के दाम भेला मंदा।मंदामर गेलो मानवता सब बन भेलो बनियाँ।। बनियाँआव रे ....हे दिल के जे करिजा कहलाबऽ हे सुथ्थर।सुथ्थरहमरा लग हे ई दुनियाँ इ। उथ्थर।इ उथ्थरऐसन-बइसन केहम समझऽ ही धुनियाँ।। धुनियाँआव रे ....हाय-राम कइसन ई अयलइ जमाना।जमानाअपन बेटी-पुतहु के नचावे नचनियाँ।। नचनियाँआव रे .....
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