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बुद्ध भगवान,
जहाँ था धन, वैभव, ऐश्वछर्य ऐश्वर्य का भंडार,
जहाँ था, पल-पल पर सुख,
जहाँ था पग-पग पर श्रृंगार,
वहाँ पर लेकर जन्म ,
वहाँ पर पल, बढ़, पाकर विकास,
कहाँ से तुम्में् तुममें जाग उठा
अपने चारों ओर के संसार पर
संदेह, अविश्वापसअविश्वास?
और अचानक एक दिन
तुमने उठा ही तो लिया
उस कनक-घट का ढक्कगनढक्कन,
पाया उसे विष-रस भरा।
दुल्हउन दुल्हन की जिसे पहनाई गई थी पोशाक,
वह तो थी सड़ी-गली लाश।
तुम रहे अवाक्,
हुए हैरान,
क्योंै क्यों अपने को धोखे में रक्खेा रक्खे है इंसान,क्योंै क्यों वे पी रहे है विष के घूँट,
जो निकलता है फूट-फूट?
क्याि क्या यही है सुख-साज
कि मनुष्य खुजला रहा है अपनी खाज?
देने लगे जगह-जगह उपदेश,
जगह-जगह व्यादख्या नव्याख्यान,देखकर तुम्हाजरा दिव्यय तुम्हारा दिव्य वेश,घेरने लगे तुम्हेंश तुम्हें लोग,
सुनने को नई बात
हमेशा रहता है तैयार इंसान,
जीवन है एक चुभा हुआ तीर,
छटपटाता मन, तड़फड़ाता शरीर।
सच्चातई सच्चाई है- सिद्ध करने की जररूरत है?
पीर, पीर, पीर।
 
तीर को दो पहले निकाल,
किसने किया शर का संधान?-
अंत में, सबका है यह सार-
जीवन दुख ही दुख का है विस्तायर,
दुख की इच्छाद इच्छा है आधार,
अगर इच्छा् को लो जीत,
पा सकते हो दुखों से निस्ताीर,
पा सकते हो निर्वाण पुनीत।
ध्वसनितध्वनित-प्रतिध्वतनितप्रतिध्वनिततुम्हाेरी तुम्हारी वाणी से हुई आधी ज़मीन-भारत, ब्रम्हाेबर्मा, लंका, स्या म,
तिब्बात, मंगोलिया जापान, चीन-
उठ पड़े मठ, पैगोडा, विहार,
महंत, महात्माछ हज़ार,
लाया करें अहदनामे इलहाम,
छाँटा करें अक्लम अक्ल बघारा करें ज्ञान,
दिया करें प्रवचन, वाज़,
तू एक कान से सुनती,
इसने समझ लिया था पहले ही
ख़दा साबित होंगे ख़तरनाक,
अल्लासहअल्लाह, वबालेजान, फज़ीहत,
अगर वे रहेंगे मौजूद
हर जगह, हर वक्तह।वक्त।
झूठ-फरेब, छल-कपट, चोरी,
जारी, दग़ाबाजी, छोनाछीना-छोरी, सीनाज़ोरी
कहाँ फिर लेंगी पनाह;
ग़रज़, कि बंद हो जाएगा दुनिया का सब काम,
सोचो, कि अगर अपनी प्रेयसी से करते हो तुम प्रेमालाप
और पहुँच जाएँ तुम्हागरे तुम्हारे अब्बा जान,
तब क्याच होगा तुम्हाीरा हाल।
तबीयत पड़ जाएगी ढीली,
इसने उन्हीं की बनाई मूर्ति,
वे थे पूजा के विरुद्ध,
इसने उन्हींक उन्हीं को दिया पूज,उन्हेंन ईश्वकर उन्हें ईश्वर में था अविश्वाास,इसने उन्हींक उन्हीं को कह दिया भगवान,वे आए थे फैलाने को वैराग्यदवैराग्य,
मिटाने को सिंगार-पटार,
इसने उन्हींि उन्हीं को बना दिया श्रृंगार।
बनाया उनका सुंदर आकार;
उनका बेलमुँड था शीश,
और मिट्टी,लकड़ी, पत्थंर, लोहा,
ताँबा, पीतल, चाँदी, सोना,
मूँगा, नीलम, पन्नागपन्ना, हाथी दाँत-
सबके अंदर उन्हें डाल, तराश, खराद, निकाल
बना दिया उन्हेंू उन्हें बाज़ार में बिकने का सामान।
पेकिंग से शिकागो तक
कोई नहीं क्यूारियों की दूकान
अमीरों के ड्राइंगरूम,
रईसों के मकान
तुम्हाकरे तुम्हारे चित्र, तुम्हाारी तुम्हारी मूर्ति से शोभायमान।पर वे हैं तुम्हा रे तुम्हारे दर्शन से अनभिज्ञ,तुम्हाहरे तुम्हारे विचारों से अनजान,सपने में भी उन्हेंि उन्हें इसका नहीं आता ध्यामन।ध्यान।
शेर की खाल, हिरन की सींग,
कला-कारीगरी के नमूनों के साथ
और आज
देखा है मैंने,
एक ओर है तुम्हा री तुम्हारी प्रतिमा
दूसरी ओर है डांसिंग हाल,
हे पशुओं पर दया के प्रचारक,
अहिंसा के अवतार,
परम विरक्तअविरक्त,
संयम साकार,
मची है तुम्हाारे रूप-यौवन के ठेल-पेल,
इच्छाै और वासना खुलकर रही हैं खेल,
गाय-सुअर के गोश्तु गोश्त का उड़ रहा है कबाब
गिलास पर गिलास
पी जा रही है शराब-
बज उठा है जाज़,
निकालती है आवाज़ :
:::"मद्यं शरणं गच्छा मिगच्छामि,:::मांसं शरणं गच्छा मिगच्छामि,:::डांसं शरणं गच्छा मि।गच्छामि।"
</poem>
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