भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
29'''प्राण-पाहुने''''''रहें सदा ही साथ''''''हाथों में हाथ।'''30जन्म-जन्म सेजब गूँथा है प्यारमहका द्वार।31साँझ का गानछूकरके अम्बरसिन्धु में डूबा।32एकाकी मनभीड़ भरा नगरजाएँ किधर !33पाएँगे कैसेहम तेरी खबरतम है घना।34आ भी तो जाओसूने इस पथ मेंदीप जलाओ।35गटक लियाखुशबू से सिंचित।पूरा वसन्त। 36'''आँखों से पिया'''रुपहला वसन्तमन न भरा। 37ले लूँ बलाएँसारी की सारी जो भीद्वारे पे आएँ।38ठिठका चाँदझाँका जो खिड़की सेदूजा भी चाँद।39होगी जो भोरऔर भी निखरेगामेरा ये चाँद।40नभ का चन्दाभोर में लगे फीका,मेरा ये नीका। 41सात पर्दों मेंतुम को यों छिपालूँदेखूँ मैं तुम्हें।42भाल तुम्हारामन में झिलमिलईद का चाँद ।43नेह का जलजीवन का सम्बलसाथ तुम्हारा।
</poem>