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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषिपाल धीमान ऋषि
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|संग्रह=शबनमी अहसास / ऋषिपाल धीमान ऋषि
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<poem>
दिल मेरा आज ग़मे-यार की जागीर लगे
धुंधली धुंधली सी किसी याद की तस्वीर लगे।

ज़ीस्त के जाल में इस तरह फंसा हूँ ऐ दोस्त
जुल्फ़े-जानां भी मुझे आज तो जंज़ीर लगे।

मुस्कुराते ही रहे आज वो हमसे मिलकर
मसअला यार हमें कोई ये गंभीर लगे।

इसको इक रोज़ तो ढहना ही था नज़र डालें कभी
हर किसी से बड़ी अपनी ही जिन्हें पीर लगे।

अपने हाथों से जिन्हें मैंने भरा था यारों
मेरे सीने में उन्हीं तरकशों के तीर लगे।

ऐ 'ऋषि' शेर तेरे ओस की बूंदे हैं, मगर
क्यों हरिक शख्स को शोलों की-सी तासीर लगे।
</poem>
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