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10:40, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ये ख़त पाकर इसी ख़त के बहाने तुम चले आना
महब्बत को हमारी आज़माने तुम चले आना।
तुम्हें वादा अगर हो याद अपना तो ये ख़त पढ़कर
इजाज़त है कि वादे को निभाने तुम चले आना।
जगाया चूमकर पलकें हमें जिस दिन, हुआ था तय
कभी मैं रूठ जाऊं तो मनाने तुम चले आना।
पहुंचने से तेरे पहले, अगर ये दम निकल जाये
मैं 'लावारिस' नहीं हूँ, ये बताने तुम चले आना।
कोई आये न आये तुम से ये मेरी गुज़ारिश है
दिया इक कब्र पर मेरी जलाने तुम चले आना।
तुम्हारी याद में जब हम कभी बैचैन हो जाएं
ग़ज़ल कोई हमारी गुनगुनाने तुम चले आना।
हमेशा जीतते 'विश्वास' आये शर्त अब तक तुम
चलो इक बार मुझको फिर हराने तुम चले आना।
</poem>