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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
अर्ज़ है जानो-दिल पुर-सुकूं कीजिये
हम से लिल्लाह कुछ गुफ्तगू कीजिये।

अपने दिल में रखें मेरे ऐबो हुनर
मत तमाशा इन्हें कू-ब-कू कीजिये।

नैमतें आपके चूम लेंगी क़दम
खुद को ईसार से सुर्खरू कीजिये।

हाथ क़ासिद के गर भेजिए ख़त कभी
दस्तखत बारहा हू-ब-हू भेजिये।

हल, सवालों के ढूंढे नहीं दर-बदर
बेझिझक आइना रूबरू कीजिये।

पेश्तर हर इबादत में दस्तूर है
आप पहले मुक़म्मल वज़ू कीजिये।

शर्म से सर झुके एक दिन आपका
ऐसी 'विश्वास' मत आरज़ू कीजिये।

</poem>
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