1,349 bytes added,
11:10, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उड़ रहे प्यार के चीथड़े हैं
क्या यही सीढ़ियां हम चढ़े हैं।
लिख गया कोई सादे वरक़ पर
आइने टूट कर गिर पड़े हैं।
मत हदें तोड़िए गौर करिये
सरहदों पर सिपाही खड़े हैं।
वक़्त की फ़िक्र जिसने नहीं की
वक़्त ने फिर तमाचे जड़े हैं।
थे बड़े तो दिखाते बड़प्पन
दिख गया आप कितने बड़े हैं।
कुछ नहीं है महब्बत से बढ़कर
हम सबक़ बस यहीं तक पढ़े हैं।
जिस गली से भी गुज़रे क़दम ये
ख़ार 'विश्वास' कुछ कम पड़े हैं।
</poem>