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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
अब खत्म हो दूरी सनम
महकी है कस्तूरी सनम।

होता हमेशा है नहीं
हर मौन मंजूरी सनम।

लो नज़्र है अब आपकी
नायाब मंसूरी सनम।

शायद प्रतीक्षा कर रहा
शुभ प्रात सिन्दूरी सनम।

बाक़ी न रखिये आज अब
ये खास दस्तूरी सनम।

होने न पाए राएगां
ये रात अंगूरी सनम।

'विश्वास' पल में खुशनुमा
हो ज़िन्दगी पूरी सनम।

</poem>
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