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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
कैसे कह दें ग़म हमारे वो बटाएंगे
ज़ख़्म पर दिल के कभी मरहम लगाएंगे।

था न अंदाज़ा दग़ा देंगे सब अपने ही
बोल उनसे चाह कर भी हम न पाएंगे।

जिनके बल पर जंग ठानी सुब्ह दम वो ही
दिन के ढलते क्या पता था टूट जाएंगे।

राज़ खुलने से कभी बाकी नहीं रहता
आंख कह देती अगर लब खुल न पाएंगे।

हर गिले शिकवे हुए बे-सूद लिख देना
उनके वादे आइना उनको दिखाएंगे।

क्या करेंगे उनसे हम मिलकर गले आखिर
अब न शायद वो हमें पहचान पाएंगे।

ये न थी उम्मीद वो दहलीज़ तक आकर
माली हालत का पता कर लौट जाएंगे।

अब दुआ ताबीज़ से 'विश्वास' कर तौबा
कब्र तक कुछ दर्द तेरे साथ जाएंगे।
</poem>
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