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17:54, 27 मई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
हे शतरूपा, हंसवाहिनी,
विद्या का वरदान हमें दो।
करते तेरा वंदन माता,
हर लो सब तम ज्ञान हमें दो।
हमको ऐसा वर दो माता,
छंदों की लहरें उपजाएँ।
अपने गीतों की खुशबू से,
हम सबके उर को महकाएँ।
स्वर की देवी, हे जगमाता,
इस जग में सम्मान हमें दो।
हे शतरूपा...
तेरे बालक हम अज्ञानी,
लगती हमको राह कठिन है।
मात ज्ञान से झोली भर दो,
मुश्किल जीवन विद्या बिन है।
चित है चंचल, मन में भटकन,
जीवन का नवगान हमें दो।
हे शतरूपा...
करके तेरा पूजन माता,
मूरख भी ज्ञानी बन जाता।
तेरे वर से ही हे माता,
मानव पोथी पढ़-लिख पाता।
चाँद-सितारे हम भी छू लें,
ऐसी एक उड़ान हमें दो।
हे शतरूपा...
</poem>