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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
सियह रात रंगत बदलने लगी है
सहर होने को अब मचलने लगी है।

मैं ख्वाबों की दुनिया में गुम हो गया हूँ
तमन्ना जवां दिल में पलने लगी है।

किनारे पे पहुंचेगी कैसे न कश्ती
निशाने पे शमशीर चलने लगी है।

बढ़ा हौसला इस क़दर कारवां का
कि रहजन की छाती दहलने लगी है।

ये ज़ुल्मों-सितम के अंधेरे से कह दो
कि लौ सरफ़रोशी की जलने लगी है।

सितारों की महफ़िल बुलाने की ख़ातिर
ज़मीं आसमां तक उछलने लगी है।

</poem>
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