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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
तुम्हारा झूठ बहुत लाजवाब लगता है
किसी के सच से भी कामयाब लगता है।

कभी वो खुद को भी देखे कि क्या है कैसा है
ज़माना जिसकी नज़र में खराब लगता है।

तुम्हारे साथ मिरी ज़िन्दगी गुज़रना अब
किसी ग़रीब की आंखों का ख़्वाब लगता है।

न जद्दोजहद न मसला न कोई दर्दो-अलम
यहां पे ठहरना इक पल अज़ाब लगता है।

नशा है प्यार का अल्ला क़सम कि जादू है
तुम्हारे हाथ का पानी शराब लगता है।

ज़रा भी कमतरी कमबख्त को पसन्द नहीं
हमारा दिल कोई बिगड़ा नवाब लगता है।

तुम्हारा देर तलक हंस के चुप लगा जाना
मिरे सवाल का दिलकश जवाब लगता है।



</poem>
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