भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मुसलसल गिर रही है
जिसके ध्वँस ध्वंस की आवाज़
अब सिर्फ़ स्वप्न में ही सुनाई देती है !
(रचनाकाल: 2017, दिल्ली)
</poem>