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तुम मेरा ही रूप हो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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03:05, 3 जुलाई 2019
<poem>
163
न
गहन
सिन्धु अँधियार भी , उमड़ रही जलधार।
मैं एकाकी कर गहो, छोड़ो मत मझधार।
164
वीरबाला
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