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{{KKRachna
|रचनाकार=विरेन सांवङिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
संस्कृति तो भौत परै आज माँ बाबू का मान नहीं
आजाद परिंदे हां हम युग के शिक्षा भोत जरूरी है
शिक्षक पहले मात पिता पर कदर कसूती खूरी है
सब जाणै इस दूनिया म्ह माँ बाबू से भगवान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
साधू मै नहीं साध कति ना है सत्पुरूषां का जोर
कपड़े औछे होए औरत के निंगाह् मर्दां की चोर
वेद शास्त्र बन्द धरे पुराण किस्से का बखान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
भेष बदलगे देश बदलगे बदली जा सै सोच बता
संस्कृति कै ठोकर लागैं इसी आगी करड़ी मोच बता
आधूनिकता गई घुस फोन मै धरोहर का ध्यान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
चदाँ चमकै निल गगन के गजब उजियारा हो सै
संस्कारी सा बालक घर मै सबनै प्यारा हो सै
ना करकै गुजरै राम रमी इसे सांवड़ियें अणजान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
</poem>
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|संग्रह=
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अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
संस्कृति तो भौत परै आज माँ बाबू का मान नहीं
आजाद परिंदे हां हम युग के शिक्षा भोत जरूरी है
शिक्षक पहले मात पिता पर कदर कसूती खूरी है
सब जाणै इस दूनिया म्ह माँ बाबू से भगवान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
साधू मै नहीं साध कति ना है सत्पुरूषां का जोर
कपड़े औछे होए औरत के निंगाह् मर्दां की चोर
वेद शास्त्र बन्द धरे पुराण किस्से का बखान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
भेष बदलगे देश बदलगे बदली जा सै सोच बता
संस्कृति कै ठोकर लागैं इसी आगी करड़ी मोच बता
आधूनिकता गई घुस फोन मै धरोहर का ध्यान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
चदाँ चमकै निल गगन के गजब उजियारा हो सै
संस्कारी सा बालक घर मै सबनै प्यारा हो सै
ना करकै गुजरै राम रमी इसे सांवड़ियें अणजान नहीं
अनपढ नै तो छोड बावली पढे लिखे नै ज्ञान नहीं
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