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.... शोकान्त !
 
मैं ही जीवन की
रस विहीन!
 
मैं ही भोजक
भोज्य!
आदि ... मध्य... अंत
विषाद सिक्त
बोझिल मंथर गति से विकसित!
 
पर,
तुम कौन?
रंभा?   उर्वशी ?
उर्वशी ?
एकरस कथानक में अचानक !
 
यह सब
 
'सहसा' है,
 
अनमिल
 
अस्वाभाविक है !
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