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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
दोनों जहां से जंग किये जा रहे हैं लोग
दोनों जहां का दर्द सहे जा रहे हैं लोग
कितनी उदास शामें अभी देखने को हैं
क्यों एक दो पे आह भरे जा रहे हैं लोग
वो मारका नहीं है कभी इश्क़ से बड़ा
टुकड़ों में जिस पे बँट के लड़े जा रहे हैं लोग
कितना हसीन है ये बिखरने का सिलसिला
जीने के वास्ते भी मरे जा रहे हैं लोग
तेजस वही रफ़ीक़ जिसे चाहते थे कल
उस से बिछड़ के दूर चले जा रहे हैं लोग
</poem>
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|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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दोनों जहां से जंग किये जा रहे हैं लोग
दोनों जहां का दर्द सहे जा रहे हैं लोग
कितनी उदास शामें अभी देखने को हैं
क्यों एक दो पे आह भरे जा रहे हैं लोग
वो मारका नहीं है कभी इश्क़ से बड़ा
टुकड़ों में जिस पे बँट के लड़े जा रहे हैं लोग
कितना हसीन है ये बिखरने का सिलसिला
जीने के वास्ते भी मरे जा रहे हैं लोग
तेजस वही रफ़ीक़ जिसे चाहते थे कल
उस से बिछड़ के दूर चले जा रहे हैं लोग
</poem>