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{{KKRachna
|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
}}
एक जीवन मिला था
उसे जिया नहीं
वह अमृत-घट था
उसे पिया नहीं
भरमते रहे
प्यासे अौर निरीह
उस झरने की खोज में
जो अंदर था
बंद अौर ठहरा हुआ
उसे अपने को दिया नहीं
माँगते रहे प्यार अौर आश्वासन
कृपण हो गए हैं लोग
दुहराते रहे बार-बार
खुद को कुछ दिया नहीं
खोजते रहे अलंकरण
सजाने के
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
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|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
}}
एक जीवन मिला था
उसे जिया नहीं
वह अमृत-घट था
उसे पिया नहीं
भरमते रहे
प्यासे अौर निरीह
उस झरने की खोज में
जो अंदर था
बंद अौर ठहरा हुआ
उसे अपने को दिया नहीं
माँगते रहे प्यार अौर आश्वासन
कृपण हो गए हैं लोग
दुहराते रहे बार-बार
खुद को कुछ दिया नहीं
खोजते रहे अलंकरण
सजाने के
उन सपनों को--जो दिखे नहीं।
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