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18:33, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:मैं लिए हूँ
:प्राण की यह रिक्त झोली
:माँगता हूँ स्नेह-निर्मल,
:देखना बस चाहता हूँ
:हाथ ममता का
:उपेक्षित शीश पर !
:यदि पा गया तो —
:प्राण में भर वेग दुर्दम
:और धुन तूफ़ान-सी लेकर
:अभावों को मिटाने
:बढ़ चलूंगा !
:वेदना-अवसाद के,
:अवसान के युग
:जाएंगे बन
:हर्ष के
:उत्थान के क्षण !
:1941