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पत्थर से हमने चाहा था,फ़ितरत अपनी बदलेगा,
हम टकराकर घायल होंगे, उसको बदल न पाएँगे ।।
4तेरे नयनों के मन्दिर में,घी के दो-दो दीप जले।तेरे अधरों पर संझा की,मधुर आरती खूब फले।।सुरभित होता कोना-कोना, तेरे इस चन्दन -तन से साँसों में मलयानिल डोले,अन्तर में अनुराग पले।
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