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11:43, 6 फ़रवरी 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम बधानी
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<poem>
हिया रणमिणी लगैगे-लगैगे
खुद वीं भग्यानी की
मन उदासू सरैगे-सरैगे
खुद वीं भग्यानी की
खांद खै नि सक्यौं,स्येंद स्यै नि सकी
उठि हूक इनी हिटि न थौ खै कखी
हवै तवै मचैगे-मचैगे
खुद वीं भग्यानी की
भीड़ म ह्वैक भि एकुलू बेकुलू
वींकु सोर,रटन कब मुखुड़ि देखुलू
पापी फक-फक रूवैगे-रूवैगे
खुद वीं भग्यानी की
रूप घनघोर थौ,ज्वानि झकाझोर थै
दुन्या म हैंकि नि देखि, क्वी वीं से सवै
माया कुरमुरी जगैगे -जगैगे
खुद वीं भग्यानी की
गैल्या चखुला दीदे,पंखूर मैसणी
अंग्वाळि लगी भेंटि औलु वीं सणी
मेरू मन तरसैगे-तरसैगे, खुद वीं भग्यानी की
</poem>