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{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=खड़ी बोली
}}
'''बिदाई गीत -1 <br>'''
 
हेरी मेरा लम्बा सहेलियों का साथ<br>
हेरी मैं आई ससुर दरबार <br>
सासड़ तो आई मुझै तारण नै<br>
हेरी मैंने मुड़-मुड़ दाबे री पाँव<br>
कि सीस न दिया उस बैरण नै ।<br>
हेरी मैंन्नै पिस्या धड़ी भर चून<br>
कि पीस लिया निरणों बासी नै<br>
हेरी मेरी सासू बड़ी चकचाल<br>
रोट्टी तो धर आई ताळे मैं<br>
हेरी मैंन्नै छोटी नणद ली साथ<br>
हेरी मेरी नीचे से बोली सास –<br>
बहू नै सिर पै बठ्या रह्या हो ! <br>
‘हेरी तू चुप रो मेरी माँ<br>
घणे दिन रहली अकेली हो।’<br>
बेट्टा ऐसे न बोल्लै तू बोल<br>