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कृष्ण गीत / लावण्या शाह

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बृज मण्डल में कनक घंटियां
खनक रहीं गोधूली में
धूल उड़ रही चहुं दिशा में
बृज में गोरज बेला है।

डाल झुक गई कदंब की
गूंज उठा स्वर वंशी का
झूल रहे हैं‚ नवतरु पल्लव
लहराते यमुना जल पर।

दिगदिगन्त से सूर्य-रश्मियाँ
लौट पड़ी हैं कुछ थकी हुई
बाट जोहती मन मोहन की
स्वयं राधिका‚ खड़ी हुई।

आँगन है जसुमति मैया का
नन्द गाँव है मन भावन
किशना के घर आने से
लगता कितना प्यारा मोहन।

बृज की माटी तू पावन है‚
बृज की रज तू चंदन है।
जहाँ श्याम के युगल चरण का
पत्र-पत्र पर अभिनन्दन है।
</poem>
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