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|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलाषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हालामर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,<br>क्यों पीने की अभिलाषा पी पाया केवल दो बूंदों सेन अधिक तेरी हाला, करते सबको मतवाला,<br>हम पिस पिसकर मरते हैंजीवन भर का, तुम छिप छिपकर मुसकाते होहाय, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,<br>हाय, हमारी पीड़ा से भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।<br><br>मधुशाला।।१०२।
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,<br>पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,<br>जिसने जीवन भर कादौड़ाया बना रहे वह भी प्याला, हायमतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप नहीं, परिश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,<br>भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।<br><br>दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।
जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,<br>जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,<br>मतवालों की जिहवा से हैं कभी निकलते शाप साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,<br>दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।<br><br>इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।
नहीं चाहतामद, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हालामदिरा,<br>नहीं चाहतामधु, धक्के देकरहाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला, छीनूँ औरों का क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,<br>साकी, मेरी ओर मेरे पास देखो मुझको तनिक मलाल नहींआना मैं पागल हो जाऊँगा,<br>इतना प्यासा ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।<br><br>मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।
मद, मदिरा, मधु, क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,<br>क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,<br>साकी, मेरे पास न आना पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!मैं तो पागल हो जाऊँगा,<br>प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।<br><br>उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।
क्या देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,<br>क्या देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,<br>पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!<br>समझ मनुज की दुर्बलता मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।<br><br>कहा नहीं कुछ भी करता,किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।
देने को जो मुझे कहा एक समय संतुष्ट बहुत था दे न सकी मुझको पा मैं थोड़ी-सी हाला,<br>देने को जो मुझे कहा भोला-सा था दे न सका मुझको मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,<br>समझ मनुज छोटे-से इस जग की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करतामेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,<br>किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।<br><br>विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,<br>भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा भाँत भाँत का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,<br>छोटे-एक एक से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता थाबढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,<br>विस्तृत जग जँची न आँखों में, हायपर, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।<br><br>कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,<br>भाँत भाँत का आया एक समय झूमा करता था मेरे हाथों में मधु का पर प्याला,<br>एक एक से बढ़करसमय पीनेवाले, सुन्दर साकी ने सत्कार कियाआलिंगन करते थे,<br>जँची न आँखों मेंआज बनी हूँ निर्जन मरघट, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।<br><br>एक समय थी मधुशाला।।११०।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,<br>एक समय झूमा छलछल छलका करता था मेरे हाथों पर इससे पल पल पलकों का प्याला,<br>एक समय पीनेवाले, आँखें आज बनी हैं साकी आलिंगन करते थे,<br>गाल गुलाबी पी होते,आज बनी हूँ निर्जन मरघटकहो न विरही मुझको, एक समय थी मधुशाला।।११०।<br><br>मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,<br>छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,<br>आँखें आज बनी हैं कितनी जल्दी साकीका आकर्षण घटने लगता है, गाल गुलाबी पी होते,<br>कहो न विरही मुझकोप्रात नहीं थी वैसी, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।<br><br>जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,<br>कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,<br>कितनी जल्दी पीनेवाले, साकी का आकर्षण घटने लगता हैकी मीठी बातों में मत आना,<br>प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११२।<br><br>मधुशाला।।११३।
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हालाछोड़ा मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,<br>कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,<br>पीनेवालेअब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है, साकी की मीठी बातों में मत आना,<br>मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।<br><br>क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।
छोड़ा यह न समझना, पिया हलाहल मैंने पंथ मतों को तब कहलाया मतवाला,<br>चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब न मिली हाला,तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,<br>अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती हैजले हृदय को और जलाना सूझा,<br>क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।<br><br>मरघट कोअपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,<br>तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्यालाटूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,<br>जले हृदय को और जलाना सूझाकितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए, मैंने मरघट को<br>अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।<br><br>कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,<br>टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की मालाहाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,<br>कितने कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,<br>कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही पीनेवालों में है मधुशाला।।११६।<br><br>एक अकेली मधुशाला।।११७।
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला,<br>! हाला!कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,<br>कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकीमिलन हुआ,<br>कितने पीनेवालों पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में ,मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है एक अकेली मधुशाला।।११७।<br><br>मधुशाला।।११८।
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!<br>मुझे न मिलता था मदिरालयके अंदर हूँ, मुझे न मिलता था मेरे हाथों में प्याला,<br>मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत प्याले मेंमदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,<br>मैं अब जमकर बैठ इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।११८।<br><br>-मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,<br>प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,<br>इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -<br>मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।<br><br> किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,<br>इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,<br>अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,<br>एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।<br/poem><br>{{KKPageNavigation|पीछे=मधुशाला / भाग ५ / हरिवंशराय बच्चन|आगे=मधुशाला / भाग ७ / हरिवंशराय बच्चन|सारणी=मधुशाला / हरिवंशराय बच्चन}}
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