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उतरन-सा / अशोक शाह

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छाया गया सन्नाटा
पसरा अकेलापन
 
ऊब है घनी हुई
उदासी अधिक विरल
 
उतरन-सा लगता है
यह समय
अभी अभी गया है कोई
इसे पहन
</poem>