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07:21, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी'
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|संग्रह=
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<poem>
प्रकृति मा भेद नी,
मनख़्यों मा च,
मनख़्योंन बणाइन
मठ-मंदिर जख
दर्शन कै-कैक पाप छन
तख प्रकृति का दर्शन आम छन।
प्रकृतिन न बाड़ बणायी
न डांडि-कांठयों मा तार बांधिन
मनख़्योंन प्रकृति कि
चीज खास बणायिन
पण क़ुछ तैं फांस बणायिन।
घाम सबकु, जोन सबकि
गैणा सबुका, बरखा सबुकी,
पण, मनख़्योंन शिवा मंदिर मनख़्योंक आग बणायिन।
</poem>