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|रचनाकार=सोनरूपा विशाल
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मानस की ध्वनियाँ कण कण में गुंजित हैं।
क्षिति,जल,पावक,गगन,पवन आनंदित हैं।
राम आगमन के सुख से अब छलक उठे,
वर्षों से जो भाव हृदय में संचित हैं।
आज आस्था ने पाया परिणाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
कहने को सरयू के जल में लीन हुए।
राम हृदय में हम सबके आसीन हुए।
जगदोद्धारक मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ,
तन,मन,धन से हम प्रभु के आधीन हुए।
भोर हमारी राम, राम ही शाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
जो सर्वस्व रहे उनको संत्रास मिला।
परिचय को उनके केवल आभास मिला।
पाँच सदी के षड्यंत्रों के चक्रों से,
दशरथ नंदन को फिर से वनवास मिला।
किंतु आज हम जीत गए संग्राम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
आज आसुरी नाग धरा के कीलित हैं।
अक्षर-अक्षर भक्ति भाव से व्यंजित हैं।
रामलला के ठाठ सजेंगे मंदिर में,
उस क्षण को हम सोच-सोच रोमांचित हैं।
स्वर्ग बन गया आज अयोध्या धाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
</poem>
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मानस की ध्वनियाँ कण कण में गुंजित हैं।
क्षिति,जल,पावक,गगन,पवन आनंदित हैं।
राम आगमन के सुख से अब छलक उठे,
वर्षों से जो भाव हृदय में संचित हैं।
आज आस्था ने पाया परिणाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
कहने को सरयू के जल में लीन हुए।
राम हृदय में हम सबके आसीन हुए।
जगदोद्धारक मर्यादा पुरुषोत्तम हैं ,
तन,मन,धन से हम प्रभु के आधीन हुए।
भोर हमारी राम, राम ही शाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
जो सर्वस्व रहे उनको संत्रास मिला।
परिचय को उनके केवल आभास मिला।
पाँच सदी के षड्यंत्रों के चक्रों से,
दशरथ नंदन को फिर से वनवास मिला।
किंतु आज हम जीत गए संग्राम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
आज आसुरी नाग धरा के कीलित हैं।
अक्षर-अक्षर भक्ति भाव से व्यंजित हैं।
रामलला के ठाठ सजेंगे मंदिर में,
उस क्षण को हम सोच-सोच रोमांचित हैं।
स्वर्ग बन गया आज अयोध्या धाम।
स्वागत हे श्री राम,स्वागत हे श्री राम।
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