575 bytes added,
05:37, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
तखरीब के आसार हैं हर सू, वो कि बस
हर शोबे पे है किज़्ब का जादू वो कि बस
हर सम्त वही मंज़रे-इब्रत अंगेज़
निकले हैं फ़ना होने के पहलू, वो कि बस।
</poem>