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ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की / फ़िराक़ गोरखपुरी
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17:09, 24 अक्टूबर 2020
रक़ीबे-ग़मज़दा<ref>दुखी प्रतिद्वन्द्वी</ref> अब सब्र कर ले
कभी इससे मेरी भी दोस्ती थी
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