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Kavita Kosh से
शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा बुझुँगा
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूँगा देवता बनकर पुजूँगापुजुँगा; आँसूओं को देखकर मेरी हँसी हंसी तुम
मत उड़ाओ!
मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!
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