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सुदूर / निकलाय रुब्त्सोफ़ / अनिल जनविजय
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11:52, 19 फ़रवरी 2021
<poem>
याद मुझे है आज भी वो सुदूर जंगली इलाका
नदी में जहाँ
तैरा करते थे छप
तैरा करता था छप
-छप मार छपाका
जाड़ों में वहाँ जब आता था तेज़ बर्फ़ीला तूफ़ान
सू-सू-सू सीटी बजाता ताक़त का करता बखान
अनिल जनविजय
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