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जीवन-सम्बन्धी दो और कवितायें / अजित कुमार
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13:45, 11 अक्टूबर 2008
<Poem>
(1)
सत्य है, हमने बहुत संघर्ष झेले ।
किन्तु वे सब हमारे मन में हुए थे ।
नहीं छू, देख, सुन पाए ।
अरे, हम तो विचारों में जिए थे ।
(2)
मैं आशाओं में जीवित हूँ ।
वह लहर अभी उठकर छू लेगी चाँद,
अनिल जनविजय
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