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पत्थर -2 / सुधा गुप्ता

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तुम्हें जीना
और
महसूसना -प्रतिपल
कितना
सुखद है !
लेकिन
कितना मुश्किल
तुममें
कुछ
उगाना---
करती रही हूँ कोशिश
करूँगी आगे भी
जानते हुए
कि
असम्भव
है
पत्थर में कविता रचाना---
</poem>