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<poem>
जगमग करती है जग सारा,
तम की यह तस्वीर ।
चकाचौंध में डूबी आँखें,
क्या समझेंगी पीर ।।

माटी के पुतले पोखर की,
माटी नित-नित घोल।
अथक परिश्रम से रजकण में,
रोटी रहे टटोल ।।

घट बर्तन गुल्लक बचपन की
राजा रानी कीर ।

दीवाली रोशन करने हित,
गढ़ते दीप अनूप ।
किन्तु उन्हीं का जीवन देखो,
पीड़ा का स्तूप ।।

बदहाली के पोषक चुप क्यों,
प्रश्न यही गम्भीर ।

महँगाई से हाँफ रहा धिक्,
पुश्तैनी व्यवसाय ।
उम्मीदों का चाक थमा है,
काया अति कृशकाय ।

आड़ा गाड़ा है जीवन में,
विपदा ने शहतीर ।
</poem>
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